15 - इस राह से उस राह की तरफ

रात भर जागना, जगाना फिर दिन भर सोना-जागना, सबसे गपशप करना यही दिनचर्या बन गई थी. मोबाइल की मनाही हो गई थी सो बहुत इमरजेंसी की स्थिति में ही बात करवाई जाती थी. दिन-रात करते-करते वह समय भी आने वाला था जबकि हॉस्पिटल से हमें जाना था. यद्यपि अभी घावों का भरना शुरू भी नहीं हुआ था तथापि हॉस्पिटल में रहने वाली स्थिति से अवश्य ही बाहर आ गए थे. हॉस्पिटल से निकल कर कहीं रहने की व्यवस्था करनी थी जो मामा जी के कारण स्वतः बन गई. पनकी स्थित उनके मकान का उपयोग हमने आगे दो से अधिक महीनों के लिए किया. रवि को भी वहाँ पर हमारा रुकना इस कारण उचित लगा क्योंकि उसके घर और एक अन्य नर्सिंग होम से हम उसकी पहुँच में बने हुए थे. अभी दोनों पैरों की न केवल ड्रेसिंग होनी थी बल्कि कई तरह के छोटे-छोटे से ऑपरेशन भी होने थे, इस कारण से ऐसी जगह भी रहना आवश्यक था जहाँ से नर्सिंग होम तक सहज पहुँच हो. 


पैरों के घाव अभी भरने जैसी हालत में नहीं थे इस कारण उन पर स्किन ग्राफ्टिंग का विचार बनाया गया. एक तरफ यह घावों को जल्द भरने में कारगर सिद्ध होने वाला इलाज था दूसरी तरफ दर्द से भरे शरीर में एक और नया दर्द पैदा करने वाली स्थिति भी थी. इस समय याद नहीं आ रहा कि इस सम्बन्ध में हॉस्पिटल में ही शुरुआत की गई या फिर वहाँ से जाने के बाद जब हम पनकी में शिफ्ट हुए, तब. हाँ, इतना याद है कि इसके कारण पैर में से कई जगह से खाल और निकाल ली गई. इस पर बाद में.


हॉस्पिटल में रहने के दौरान अनेक किस्से हुए. कुछ हमारे सामने ही तो कुछ हमें बताए गए. आईसीयू से निकले कोई तीन-चार दिन ही हुए थे. रवि का दोपहर में आना हुआ. आने के बाद उसने दोनों पैरों को हिला-डुला कर देखा फिर बोला बैठो. हमें सहारा देकर बिठाया गया. अपने आप बैठना मुश्किल होता था. छोटा भाई पकडे बैठा था तो रवि ने कहा छोड़ दो. हमें डर सा लगा. गिर जायेंगे, कह कर उसकी बात को टालना चाहा.

गिर जाना, कहते हुए उसने छोटे भाई को देखा. छोड़ दो इसे, गिर जाने दो. छोटे भाई ने हमें छोड़ दिया. एक एक हल्का सा झटका सा लगा हमें. लगा कि अब गिरे मगर अगले ही पल खुद को सँभाल लिया. दोनों हाथों से पलंग पकड़े बैठे थे, सो वैसे ही बैठे रहे. लगभग पाँच-छह मिनट उसी स्थिति में बैठे रहने के बाद रवि ने पूछा, गिरे? हमने जवाब में बस हँस दिया. उसने फिर पूछा चक्कर तो नहीं आ रहे? हमारे मना करते ही वह बोला, अब पैर लटका कर बैठो.

बाँयी जांघ के दर्द और सूजन, दाहिने पंजे के जाल और उसकी बुरी स्थिति के कारण हिलना संभव नहीं था. उसने और छोटे भाई ने सहारा देकर हमें घुमाया. इसके बाद दाहिने पैर को लटकाने के लिए कहा. दाहिना पैर लटकाया तो करंट सा दौड़ गया पूरे शरीर में. ऐसा लगा जैसे पंजा पैर के साथ जुड़ा नहीं है और अभी अलग होकर नीचे गिर पड़ेगा. लगभग आधा या एक मिनट ही हुआ होगा और पंजे से अँगूठे की तरफ से खून टपकने लगा. रवि ने तुरंत रुई उसमें ठूँस कर टपकते खून को रोकने की कोशिश की. पंजे की ऐसी हालत देख उसने पैर ऊपर किया और हमें लिटा दिया. उसने हमसे या परिवार के किसी सदस्य से कुछ नहीं कहा बस अपने साथ आये अपने सहायक से कुछ कहा और उसने सिर हिला दिया.

ऐसे ही एक दिन हमको लगने वाले लगभग दो दर्जन इंजेक्शन में से कोई एक बिना जाँचे लगा दिया गया. इसकी खबर रवि को होते ही उसने हॉस्पिटल के स्टाफ की जमकर लताड़ लगाई. असल में लगभग दो दर्जन इंजेक्शन हमें लगाये जाने थे. रवि का कहना था प्रत्येक इंजेक्शन टेस्ट करने के बाद ही लगाया जायेगा. जब उस दिन ऐसा नहीं हुआ तो उसका कहना था कि किसी को क्या जानकारी कि इस शीशी की दवा रिएक्शन नहीं कर सकती. उसने बड़े ही साफ़ और कड़े शब्दों में कहा कि इसके इलाज में किसी तरफ की कोताही बर्दाश्त नहीं.

इसके अलावा हमारी बैंगलोर वाली मामी का फोन कई बार आया. हॉस्पिटल के कमरे में सिग्नल बहुत सही से नहीं आते थे सो वहाँ हमसे बात नहीं हो पाती थी. एक दिन मामी ने हमसे बात करवाने की बहुत इच्छा व्यक्त की. हमें बताया गया तो हमने कहा कि पलंग को सरका कर खिड़की तक ले चलो, फिर खिड़की खोल देना, शायद सिग्नल मिल सकें. दोपहर बाद जबकि हमारा आराम का समय होता था, मेडिकल स्टाफ नहीं आता था तब पलंग को सरका कर खिड़की तक लाया गया. खिड़की खोलकर सिग्नल पकड़े गए और मामी से बात हो सकी. पहियों पर चलने वाले पलंग को सरकाने में किसी तरह की समस्या नहीं हुई और बात करने के बाद उसे फिर अपनी जगह कर दिया गया. इस दौरान ध्यान इसका रखा गया कि दाहिना पंजा न हिल जाए, बाँयी जाँघ के ऊपर बनी पॉकेट में किसी तरह की छेड़छाड़ न हो जाये. कुछ न हुआ, सब सही-सलामत रहा.

ऐसी ही बहुत सी छोटी-बड़ी घटनाओं के साथ हॉस्पिटल में समय निकलता रहा. कुछ दिन बाद रवि की सहमति से हॉस्पिटल से हम डिस्चार्ज होकर पनकी मामा के घर आ गए. हॉस्पिटल के एसी रूम से पीछा छूटा मगर न ऑपरेशन थियेटर ने पीछा छोड़ा, न सर्जरी ने.

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ज़िन्दगी ज़िन्दाबाद @ कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र

2 comments:

  1. पढ़ने में तुम्हारे दर्द का अहसास हम कर पाते हैं ।

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