14 - हँसते-हँसते तय होता जा रहा सफ़र

हॉस्पिटल का एक महीने से ज्यादा का समय पलंग पर ही गुजरा. आगे भी बहुत लम्बा समय पलंग पर ही गुजरेगा, ऐसा समझ आने लगा था. पैरों की स्थिति दिखाई तो नहीं दे रही थी मगर जिस तरह की पीड़ा हमें हो रही थी वो सब कुछ बता रही थी. बचपन से ही ऐसी आदत रही कि किसी भी स्थिति में परेशान नहीं हुए. किसी भी समस्या पर हड़बड़ाने का काम नहीं किया. किसी भी परेशानी में अपना धैर्य नहीं खोया. इसके अलावा बेकार बैठने की आदत भी कभी न रही. घर में लोग आज तक हमारी इस आदत से परेशान हैं. एक बार सुबह बिस्तर छोड़ते हैं तो देर रात सोने के समय ही बिस्तर की सेवा लेते हैं. दोपहर में सोने की आदत कभी न रही और समय के साथ यह शौक पैदा भी न कर सके.


अब यह विकट समस्या हो गई थी हमारे लिए. हॉस्पिटल में न कोई काम, न बाहर जाने जैसी स्थिति बस दिन-रात पलंग पर लेटे रहो. ऐसी स्थिति से उबरने के लिए बेहतर उपाय यही था कि सबके साथ बातचीत में ही व्यस्त रहा जाये. ऐसा भी उसी स्थिति में हो सकता था जबकि हम स्वयं हलके-फुल्के मूड में रहें. चूँकि परेशानी में भी परेशान न रहने की एक आदत है सो वही आदत उस समय भी काम आई. इसी तरह बातचीत कभी गंभीर मूड में कर नहीं पाते, उस समय भी नहीं किये. गंभीर बौद्धिक कभी बहुत देर हमसे सहन नहीं होता. ऐसा लगता है जैसे पाचन क्षमता इस बारे में बहुत अच्छी नहीं है, सो इसका उपयोग वहीं किया गया.


हर आने वाला वैसे भी एक तरह का टेंशन लेकर मिलने आता. यह भी हमें अपनी जिम्मेवारी समझ आता कि वह यहाँ से बिना किसी टेंशन के साथ जाए. जब वह घर जाये तो हमारी तरफ से निष्फिक्र होकर जाये. हमारी हलकी-फुलकी आदतों से, बातचीत से, चुटकुले सुनाने की आदत से, बातचीत में शब्दों की बखिया उधेड़कर हास्य पैदा करने की, बातचीत में हँसने-मुस्कुराने की आदत से घरवालों का परिचय तो था ही, ऐसे में यही सबसे सामान्य सा, सुलभ उपाय था. बस, हमारा हँसना सबको हँसाता. हमारा सामान्य बने रहना सबको सामान्य कर जाता. हमारा मजाकिया लहजा बनाये रखना सबको हल्का बनाये रखता. ये सबकुछ उन परिजनों के लिए अनिवार्य जैसी स्थिति थी जो दिन-रात की परवाह न करके, अपने सोने-जागने की चिंता न करके बस हमारी चिंता कर रहे थे.

बातें बहुत हैं करने-बताने को मगर सबके बारे में यहाँ कह भी नहीं सकते. किसी समय एक-एक करके उनके बारे में भी कहा-बताया जायेगा. अभी तो बस संदीप की एक बात हमेशा याद आती है कि तुम खूब भाग-भाग के सबकी सहायता करते थे, सबकी सेवा के लिए लग जाते हो, सबके लिए दिन-रात बिना अपनी चिंता किये लगे रहते थे, अब कुछ दिन चुप्पे पड़े रहो इसी बिस्तर पर और सबको तुम्हारी चिंता करने दो, तुम्हारी सहायता करने दो, अपनी सेवा करवा लो.

सही बात. खूब सेवा करवाई फिर सबसे, अभी तक करवा रहे हैं. सबका जमकर सहयोग लेते रहे, आज भी ले रहे हैं.

ज़िन्दगी ज़िन्दाबाद @ कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र

2 comments:

  1. इतनी पीड़ा में भी जिंदादिली से रहना बहुत बड़ी बात है.

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    1. यदि परेशानी में आप हँसते हैं तो लोग बहुत लम्बे समय तक साथ देते हैं. ये अनुभव किया है हमने.

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