5 - साँसों की सरगम पर धड़कन ने एक गीत लिखा

कार में दर्द पीते-पीते, साँसें जोड़ते-जोड़ते कानपुर की तरफ दौड़ते समय हमें अपने इलाज की निश्चिंतता ने घेर लिया था मगर दुर्घटना की खबर घर न पहुँचने के प्रति निश्चिन्त नहीं हो पा रहे थे. हम कोशिश कर रहे थे कि खबर किसी भी तरह से घर न पहुँचे साथ ही समझ भी रहे थे कि ये समाचार घर पहुँच ही जायेगा. छोटे भाई की बाइक रेलवे स्टेशन पर ही थी, वह हमारे साथ था. उसका घर वापस न लौटना दुर्घटना के प्रति गंभीरता वाला भाव अवश्य ही बनाता. ऐसी स्थिति का अपने आपमें भान होने के बाद भी यह प्रयास था कि दुर्घटना की भयावहता घर न पहुँचे. हमारी शारीरिक स्थिति की वास्तविकता घर न पहुँचे. दुर्घटना ट्रेन से हुई, यह सत्य घर न पहुँचे.


सत्य घर कैसे, किस रूप में पहुँचा पता नहीं मगर सबसे छोटे भाई, मिंटू का फोन जरूर आ गया. वो उस समय उरई में ही फार्मा क्षेत्र में कार्य कर रहा था.



हमारे साथ जा रहे छोटे भाई से बातचीत से शायद उसे तसल्ली न मिली होगी, संभव है उसे दुर्घटना की भयावहता का अंदाज़ा हो गया हो या फिर दुर्घटना की असलियत उसके पास तक पहुँच गई थी. ऐसा इसलिए क्योंकि उसने छोटे भाई पिंटू से बात करने के साथ-साथ हमसे भी बात करनी चाही. ऐसी स्थिति में जबकि हम अपनी साँसों के एक-एक टुकड़े को जोड़कर एक साँस बना रहे हों, पानी की जगह दर्द को अपने आपमें ही पीने की कोशिश कर रहे हों उस समय छोटे भाई से न केवल बात करना बल्कि उसे आश्वस्त करना कि स्थिति गंभीर नहीं है, हमारे लिए बहुत कठिन सा महसूस हो रहा था. ये सोच कर कि उससे बात न करना उसके संदेह को और बढ़ाना होगा, दर्द भरे हाथों में मोबाइल को पकड़ने की कोशिश की. सारे शरीर की छोटी-बड़ी चोटें समूचे शरीर पर अपना असर दिखा रही थीं. सारे दर्द एक तरफ किनारे लगाते हुए, बिना ये विचार किये कि कहाँ-कहाँ दर्द है, कौन सा हिस्सा अतिशय दर्द दे रहा है मोबाइल पकड़ने की आह भरी कोशिश के साथ सबसे छोटे भाई से बात की. सारी शक्ति को समेटकर अपने बोलने में लगाया. उसका अपनी तरफ से बातचीत का आधार पहला ही सवाल रहा और जो हमारे हिसाब से एकदम सही भी था कि आखिर ऐसा कैसा फ्रैक्चर हो गया, जिसका इलाज उरई में नहीं था?

उसका सवाल अपनी जगह एकदम सही था क्योंकि लगभग पन्द्रह साल पहले उसके फ्रैक्चर का इलाज उरई में ही हुआ था. एकबारगी तो दिमाग भन्ना गया. एक तरफ दर्द, दूसरी तरह संवेदना. अपनी साँसों को थाम, आँखों को खोलते हुए अपने चिरपरिचित अंदाज में उससे इतना ही बोला कि पैर में फ्रैक्चर होने के साथ-साथ हड्डी फट सी गई है, बहुत खून निकल रहा है. रवि से बात हो गई है, उसने बुलाया है, उसी के पास जा रहे हैं. इतने शब्द बोलने में ही लगा जैसे कई किमी की दौड़ लगा ली हो. इतना हाँफना तो उस समय भी नहीं हुआ था जबकि हमने कॉलेज में पहली बार पाँच हजार मीटर की दौर में भाग लिया था.

अपनी भटकती, टूटती, हाँफती साँसों को नियंत्रित करने की कोशिश में याद नहीं कि उसने क्या कहा मगर हमने पहुँच कर बात करते हैं की लड़खड़ाती आवाज़ के साथ ही मोबाइल पिंटू को पकड़ा दिया. एक पल को कार के अन्दर सबकुछ घूमता सा नजर आया. याद नहीं कि उसके बाद उन दोनों की बात हुई या नहीं. एक झटके के साथ ही अपने दिल, दिमाग को जैसे किसी अदृश्य शक्ति से ऊर्जा पाते देखा. समूची यात्रा में छोटे भाई को, उसके दोस्तों को हौसला बँधाते रहना, खुद के विश्वास और शक्ति को संचित किये रहना आज भी हमारे लिए आश्चर्य का विषय है.


इन सबके बीच भागती-दौड़ती कार आखिरकार हमें जीवित लेकर कानपुर के मेडिकल सेंटर पहुँच ही गई. साँस उस समय तक चल रही थी. कार रुकते ही रात का अँधियारा नजर आया. सड़कों की लाइट नजर आई साथ ही नजर आईं मुन्नी जिज्जी. उनका चेहरा सामने आते ही लगा जैसे अब जीवन मिल गया. अब कुछ भी नहीं हो सकता. जिज्जी ने सिर पर हाथ फेरते हुए नाम पुकारा, चिंटू. अन्दर भरा सारा गुबार, सारा अकेलापन, सारा दर्द आँसुओं के साथ बह गया. जिज्जी बहुत प्यास लगी है, मुँह से निकला मगर अगले ही पल दिमाग ने सजग किया, नहीं, डॉक्टर ने पानी पिलाने से मना किया था. तुरंत उन्हीं शब्दों के साथ अगले शब्द जोड़ दिए, मगर डॉक्टर ने पानी पीने से मना किया है. जिज्जी का सिर पर स्नेहिल हाथ का स्पर्श जैसे प्यास बुझा रहा था. हमने उसी स्पर्श के आँचल में सूखते होंठों पर जीभ फिराकर अपनी प्यास शांत करने की कोशिश की. 

उसी कोशिश के साथ रवि के अपने चिकित्सकीय कदम हमारी तरफ बढ़े. जिस दोस्त के साथ खेले-कूदे, लड़े-झगड़े अब उसी के हाथों अपनी ज़िन्दगी सौंप चुके थे. उसके साथ अब हमारी यात्रा कार से स्ट्रैचर के सहारे होते हुए ऑपरेशन थियेटर की तरफ चल पड़ी. इस यात्रा के बीच जीजा जी, बृजमोहन भैया से भी मुलाक़ात हुई. मन को तसल्ली हुई कि अब पिंटू अकेला नहीं है. अब हम अकेले नहीं हैं.

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ज़िन्दगी ज़िन्दाबाद @ कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र

6 comments:

  1. अब पढ़ रही हूँ , ये बात मुझे मेरी माँ ने बताई थी कि आपकी माँ कितनी परेशान रहती थीं क्योंकि ये परेशानी घर में बाँट भी नहीं सकते और रो भी नहीं सकते । बहादुर हो ।और हमेशा रहो ।

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  2. आपकी इच्छा शक्ति, आप का धैर्य, आपका संयम ।आप ने बहुत ही बहादुरी से सामना किया।

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    1. उस समय यह सब कैसे कर गए, हमारे लिए भी आश्चर्य है.

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  3. शुरू में तो मैं कहानी समझ रही थी, तो पहली कड़ी से पढ़ना शुरू की. बाद में समझ आया कि यह आपके साथ घटी ऐसी दुर्घटना है जिसकी पीड़ा जन्मभर साथ चलेगी. परन्तु आपके हौसले को सलाम.

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    1. ज़िन्दगी कहानी ही होती है, कभी सुख कभी दुःख... बस इसका अंत अपने हाथ में नहीं होता. हाँ अंत होने तक और उसके बाद लोग हमें कैसे याद रखें, ये हमारे हाथ में होता है.
      आभार

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