6 - दर्द के बीच नई ज़िन्दगी की तलाश

कार के रुकते ही आनन-फानन हॉस्पिटल का स्टाफ अपने काम में लग गया. कार से स्ट्रेचर, स्ट्रेचर से लिफ्ट के सहारे ऑपरेशन थियेटर तक का समय अब भारी लग रहा था. रवि के साथ कुछ पल बिताने की मंशा अधिक होने लगी. बहुत कुछ बताने-कहने का मन होने लगा. रास्ते भर अपने और परिवार के भविष्य के लिए जो सोचते चले आ रहे थे, उसे बताने की मंशा तीव्र होने लगी. ये सारी बातें अपने छोटे भाई से कह कर उसे और परेशान नहीं करना चाहते थे.


ऑपरेशन थियेटर तक पहुँचते-पहुँचते तमाम सारे निर्देश अपने सहयोगियों को देते समय भी हमारा हाथ रवि के हाथ में बना रहा. पलों के बीच से एक-एक छोटे पल को चुराते हुए वह कभी हमारे माथे पर, कभी सिर पर हाथ फेर देता. बाल इतने छोटे काहे करवा रखे हैं? कहते हुए उसने डॉक्टर से ज्यादा वह एक दोस्त के रूप में हमारी परेशानी को बाँटने की कोशिश की. पिताजी नहीं रहे न, के शब्दों के साथ आँखें खोलने का प्रयास भी नहीं किया क्योंकि अब अपनी तरफ से हम चिंता मुक्त थे.



ऑपरेशन थियेटर में आवश्यक व्यवस्था करने की कुछ पलों की भागदौड़ के बाद रवि हमारे बगल में आ खड़ा हुआ. यार, हमारा पैर लगा दो. रवि ने कुछ कहा नहीं बस हमारा हाथ अपने हाथ में लेते हुए सहयोगियों को दिशा-निर्देश देता रहा. हमें लगा शायद वह हमारी बात सुन नहीं सका है. अपनी बात को दोहराते हुए कहा, हम चलना चाहते हैं, पैर लगा दो हमारा. अबकी उसने पूरी गंभीरता से बात को सुनकर जवाब दिया कि तुम्हारे चलाने और खड़ा करने से ज्यादा जरूरी है हमारे लिए तुम्हारा बचना. लगा शायद अब दोबारा चलना नहीं हो सकेगा. लगा कि अब शायद हम अपने पैरों पर खड़े भी न हो सकेंगे. रवि की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से बड़ी आशा के साथ देखा तो वह उसका आशय समझ गया. उसने माथे पर हाथ फेरते हुए फिर कहा तुम्हारा बचाना हमारे लिए पहले है.

हॉस्पिटल की अपनी औपचारिकतायें पूरी की जा रही थीं. उसी में सुनाई दिया कि इनका छोटा भाई बाहर है, उससे यहाँ सिग्नेचर करवा लो. दिल-दिमाग लगातार सुन्न होते जाने की स्थिति के बाद भी पूरी सक्रियता से काम कर रहे थे. भावनात्मकता ने औपचारिकता पर हावी होने की कोशिश की. अपनी आँखों को मुश्किल से खोलकर रवि से कहा कि तुम हमारे दोस्त हो, हर्षेन्द्र के बड़े भाई जैसे. तुम ही कर दो सिग्नेचर या हमसे करवा लो. उससे मत करवा, वो बहुत परेशान है, इस समय.

इस कागज़ पर तुम या हम सिग्नेचर नहीं कर सकते. तुम्हारा कोई अपना ही करेगा. रवि ने हमारी भावनात्मकता को किनारे रखते हुए हॉस्पिटल से सम्बंधित औपचारिकता समझाई. तो फिर जीजा जी से करवा लो. वे भी बाहर हैं. बिना रवि के जवाब की प्रतीक्षा किये आँखें बंद कर लीं. चकाचौंध पैदा करती बड़ी-बड़ी लाइट्स सिर के ऊपर चमक रही थीं. बार-बार बंद होती आँखों को खोलने में इससे भी दिक्कत हो रही थी.


इस दौरान पैर में बंधी पट्टी खोलने का उपक्रम किया जाने लगा. कभी दो शब्द रवि के उभरते, कभी हम उससे कुछ कहते. दर्द फिर अपने चरम पर महसूस हो रहा था. कई-कई बार लगता कि अब जो साँस ली है वही अंतिम है. रवि का हाथ पूरी ताकत से पकड़ लेते.

कुछ इंजेक्शन लगाये गए, ड्रिप लगाई गई. दर्द के साथ-साथ बेहोशी जैसा अनुभव होने लगा. एहसास हुआ कि कहीं आज इसी थियेटर में अंतिम रात न हो जाये. भावनात्मकता फिर उफान मारने लगी. ऐसा होता है. जब किसी अपने करीबी का, किसी अपने ख़ास का साथ मिलता है तो व्यक्ति अन्दर से मजबूत भी महसूस करता है और कमजोर महसूस करने लगता है. कुछ ऐसा ही हमारे साथ हो रहा था. रवि का साथ मजबूती इस रूप में दे रहा था कि अब ये बचा लेगा हमें मगर कहीं न कहीं कमजोरी इस रूप में आ रही थी कि कहीं दुर्भाग्य से कुछ हो गया तो परिवार का क्या होगा.

रवि को आवाज़ देकर उसका ध्यान अपनी तरफ खींचा. टुकड़ों-टुकड़ों में, हाँफते-हाँफते उससे अम्मा के बारे में, छोटे भाईयों के बारे में, अपनी पत्नी के बारे में अपने मन की सारी बातें कहने की कोशिश की. साँस टूटती, आवाज़ लड़खड़ाती मगर शब्दों की कड़ी अपनी एक बात कहने के बाद ही टूटती. पत्नी, भाइयों के लिए तमाम ऐसी बातें जिनके बारे में अपने स्वस्थ होने के बाद रवि से एक-दो बार बात करते हुए बस हम दोनों मुस्कुरा लेते.

हमारे चारों तरफ रवि सहित कुछ और लोगों की भीड़ दिखाई देने लगी. सभी अपनी-अपनी ड्रेस में थे. कभी फिल्मों में, धारावाहिकों में दिखाई देने वाला दृश्य हमें अपने आसपास दिखाई देने लगा. किसी ने कोशिश करके हमें बिठाया. मुश्किलों से दर्द की लहर को सहते हुए बैठे गए. कुछ हाथ सहारा दिए रहे. पीछे से एक शांत, आत्मीय स्वर उभरा, आपको एक इंजेक्शन लगा रहे हैं. जहाँ पर करंट जैसा महसूस हो, झनझनाहट सी लगे बता देना. उसके अगले सेकेण्ड ही ऐसा महसूस हुआ जैसे पीछे रीढ़ की हड्डी में किसी ने बिजली का तार छुआ दिया हो. रवि, बस इतना ही मुँह से निकला और उसके बाद उन लोगों ने वापस हमें लिटा दिया. आखों को पट्टी के सहारे बंद कर दिया गया.

कमर के नीचे के हिस्से का अनुभव होना बंद सा हो गया. एक भारीपन का अनुभव होने लगा. आसपास खड़े लोगों की बस आवाजें सुनाई दे रही थीं. पीठ, हाथों, कन्धों आदि की चोट पर रवि के सहायकों के हाथ चलने लगे. चीखों से थियेटर गूंजने लगा. हाथों में, गर्दन में कुछेक इंजेक्शन लगाकर उन चीखों को शांत करने की कोशिश की गई. बेहोशी छाती रही. होश आता रहा, जाता रहा. चीखें गूँजती, शांत हो जाती. कमर के नीचे का हिस्सा सुन्न होने के बाद भी पैरों में, जाँघ पर किसी ठंडे-ठंडे तरल पदार्थ का अनुभव होता रहा. अवचेतन की स्थिति में बड़े-बड़े बर्फीले पाइप में खुद का तैरना अनुभव होता रहता. कई बार लगता कि ऐसी अनेकानेक परतों को पार करते हुए ऊपर उड़े जा रहे हैं.

कितने घंटे तक हमारे पैरों की, चोटों की सफाई होती रही, मरहम-पट्टी होती रही याद नहीं. बाद में बातचीत के दौरान रवि ने बताया कि वह कटे पैर की सफाई से संतुष्ट नहीं हो पाता और फिर उसकी सफाई में जुट जाता. लगभग छः घंटे की लम्बी जद्दोजहद के बाद वह अपने आपमें संतुष्टि कर पाया. अर्द्धबेहोशी, अर्द्धचेतानावस्था में थियेटर से निकाल कर आईसीयू में शिफ्ट किया गया. हॉस्पिटल के गलियारे से गुजरते हुए धुँधले-धुँधले कुछ चेहरे नजर आये मगर कौन-कौन दिखा याद नहीं.

होश सुबह आया तो आईसीयू में खुद को अकेले पाया. एक नर्स को इशारे से पास बुलाकर पिंटू के बारे में, रवि के बारे में पूछा. उसने छोटे भाई को बाहर से बुलाया. डॉक्टर जैसी वेशभूषा में, चेहरे पर मास्क लगाये छोटे भाई ने आईसीयू में पास आकर बताया कि अम्मा आ गईं हैं, भाभी आईं हैं. दरवाजे के काँच वाले हिस्से की तरफ इशारा कर उसने बताया कि बाहर से ही देखने की परमीशन मिली है. हलकी सी मुस्कराहट के साथ उसके चेहरे पर हाथ फेर उसको एहसास करवाया कि हम सही हैं. उसने भी मुस्कुरा कर हाथ मजबूती से थाम कर अपनी आश्वस्ति ज़ाहिर की. एक निगाह आईसीयू के दरवाजे पर डालकर हम आँखें बंद कर सबका इंतजार करने लगे.

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ज़िन्दगी ज़िन्दाबाद @ कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र 

8 comments:

  1. उफ ! कितनी हिम्मत है तुम्हारे अन्दर और अब तो पता नहीं कितनी मंजिलें हाथ फैलाये खड़ी हैं । अब दुख का कोई साया तुम्हारी तरफ न आये ।

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    1. आपका आशीर्वाद किसी दुःख को पास न आने देगा अब

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  2. उफ्फ ---- ईश्वर रक्षा करे !

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  3. ईश्वर का साथ हमेशा हिम्मत देता है .।.

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  4. ईश्वर का साथ और अंतर्मन में कहीं छुपा जज्बा...इन्ही के बीच जीवंतता है।

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