13 - सब कुछ याद रखते हुए सब कुछ भुलाते रहते हैं

चलिए, आज कुछ और बात की जाए. बात हम अपनी ही करेंगे मगर ऑपरेशन थियेटर, घाव, उनकी साफ-सफाई, ड्रेसिंग, मरहम-पट्टी, दर्द, कष्ट, चीखना, चिल्लाना आदि से अलग. इससे तो हम हम चाह कर भी नहीं बच सकते. हॉस्पिटल वाली दिनचर्या से कई महीनों बाद मुक्ति पाने के बाद भी हॉस्पिटल से नाता बना रहा. दर्द से पीछा तो अभी तक न छूटा. अब उसकी तरफ ध्यान नहीं देते. हम दोनों अपनी-अपनी जिद पर अड़े हैं. न वो पीछे हटने के मूड में रहता है और न हम. इसी कारण दोनों ने एक-दूसरे पर ध्यान देने का बजाय अपने-अपने काम पर ध्यान देना शुरू कर दिया है. आखिर ये स्थिति ऐसी है जिसे चाह कर भी विस्मृत करना संभव ही नहीं. संभव होता तो शायद एक बार प्रयास भी करते इसे भूलने का.


बहुत से लोग पहले भी समझाते रहे, अब भी समझाते हैं कि हमें इस घटना को भूलने का प्रयास करना चाहिए. उनका ऐसा कहना हमारे प्रति स्नेह ही होता है. संभव है कि उनको लगता होगा कि ऐसी बातें करने से, बताने से, लिखने से कहीं न कहीं हम परेशान हो जाते होंगे. उनको ऐसा लगता होगा कि उस समय को याद करना हमारे लिए कष्टकारी होता होगा. कष्ट, दर्द, परेशानी तो उसी समय की बातें थीं जबकि इस घटना से हमारा गुजरना हुआ. एक बार गुजर गए और फिर समझ आया कि ये तो जीवन भर का साथ है तो फिर इसके बारे में विचार करना छोड़ दिया. परेशान कुछ समय के लिए उसी समय हुए थे, ये सोच कर कि मार्च में पिताजी का देहांत और अप्रैल में हमारी दुर्घटना, क्या मई या आने वाले महीने भी किसी दुखद समाचार के साथ आएँगे? कष्ट उसी समय होता था जब लगता था कि पिताजी के देहांत के बाद हमें परिवार का सहारा बनना था और अब हम ही सहारे से खड़े हो पायेंगे.



बहरहाल, वो कष्ट, परेशानी, दर्द वहीं छोड़ कर आगे बढ़ आये. इसके बाद भी ये भूलना संभव नहीं कि ये सब हमारे साथ हैं. आखिर भूल भी नहीं सकते. रोज ही, हर पल ही वह दिन याद आता है, उस दिन के साथ मिला कष्ट याद आता है. लाख कोशिश करते हैं, लाख लोगों का कहना मानने की सोचते हैं मगर हर बार असफल रहते हैं.

आखिर कैसे भूल जाएँ जबकि अपने शरीर में ही एक पैर का न होना दिखता है? आखिर कैसे भूल जाएँ उस कष्ट को जो सुबह आँख खुलने के साथ ही हमारे साथ अपनी आँखें खोलता है? कैसे भूल जाएँ कृत्रिम पैर पहनते समय कि कोई दुर्घटना हमारे साथ नहीं हुई? कैसे भुला दें बिस्तर छोड़ने से पहले क्षतिग्रस्त पंजे की मालिश करके उसके सहारे खड़े होने की स्थिति बनाते समय कि कहीं कोई दर्द नहीं है? कैसे भूल जाएँ कि कोई दर्द नहीं है जबकि पंजे में बिना पट्टी बांधे एक कदम चलना संभव नहीं? कैसे भुला दें कृत्रिम पैर के बोझ और हाथ में पकड़ी छड़ी को जबकि कभी हम भी एथलेटिक्स में भाग लिया करते थे? कैसे भुला दें सोने से पहले कृत्रिम पैर को, पंजे की पट्टी को उतारने के बाद पैर-पंजे में आई सूजन को मालिश से सामान्य करते समय कि उस दुर्घटना से कष्ट नहीं उपजा है

हाँ, फिर भी सब कुछ याद रखते हुए भी, सब कुछ याद आते हुए भी सब कुछ भुलाना भी है, सब कुछ भुलाते भी हैं. एक बंधी-बंधाई सी मशीनी दिनचर्या की तरह पंजे की मालिश, कृत्रिम पैर का पहनना, पट्टी बांधना, दर्द को भुलाते हुए आगे बढ़ना होता ही है. दर्द अपनी तीव्रता के साथ अपना काम करता है, हम अपनी जीवटता के सहारे अपना काम करते हैं. किसी दिन दर्द जीत जाता है, किसी दिन हम जीतने का एहसास कर लेते हैं. जब कुछ ऐसा जो आपका न होकर भी आपके साथ जुड़ जाए, कुछ ऐसा जिसके बिना आपका एक कदम आगे बढ़ाना संभव न हो तब बाकी सब कुछ भुलाया जा सकता है, बस यही सब कुछ नहीं भुलाया जा सकता है. इसी सब कुछ को याद रखते हुए, इसी सब कुछ को भुलाते रहते हैं, खुद भुलावे में रहते हैं.

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ज़िन्दगी ज़िन्दाबाद @ कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र

2 comments:

  1. ऐसी दुखद घटना और परिस्थिति तो भुलाई नहीं जा सकती. इन कष्टों को जीते हुए ही जीतना होगा, इस सबको याद कर ही जीवन को आगे की ओर ले जाना होगा. बहुत भावुक पोस्ट. शुभकामनाएँ.

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    1. आभार
      कोशिश यही है कि आगे ही आगे जाएँ, पीछे का सब पीछे ही छोड़

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