47 - चलते रहना ज़िन्दगी की निशानी है

सामाजिक जीवन में गतिशीलता स्कूटर आने के पहले से बनी हुई थी, स्कूटर आने के बाद उसमें और गति आ गई थी. आवाजाही पहले की अपेक्षा अधिक बढ़ गई थी. सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रियता भी बढ़ने लगी थी. अपनी दुर्घटना के काफी पहले से कन्या भ्रूण हत्या निवारण कार्यक्रम से जुड़े हुए थे, उस कार्यक्रम में कुछ अवरोध सा आ गया था. लखनऊ की वात्सल्य संस्था के साथ जुड़कर चल रहा कार्य रुक गया या कहें कि बंद हो गया था. चूँकि उस संस्था से जुड़ने के काफी पहले से अपने खर्चे पर इस कार्य को किया जा रहा था सो अब पुनः उसी दिशा में आगे बढ़ने का मन बनाया.


घर से सभी तरह का सहयोग साथ में था और मित्र भी लगातार हौसला बनकर साथ रहते. इन सबके साथ से ताकत लेते हुए कन्या भ्रूण हत्या निवारण कार्यक्रम को और विस्तार देते हुए उसे बेटी प्रोत्साहन के रूप में पुनः आरम्भ करने का विचार किया और बिटोली नामक अभियान को आरम्भ कर दिया. विगत कई वर्षों का अनुभव हमारे साथ था जिसकी सहायता से जनपद जालौन के बाहर भी, उत्तर प्रदेश के बाहर अन्य प्रदेशों में बिटोली अभियान सम्बन्धी कार्यक्रमों का सञ्चालन आरम्भ किया. एक-एक करके टीम बनती रही और प्रदेश के साथ-साथ अन्य प्रदेशों के जनपदों में भी बिटोली के कार्यक्रम चलने लगे.




इस कार्यक्रम के अलावा एक और कार्यक्रम आरम्भ किया गया. दुर्घटना की उस विषम परिस्थिति के दौरान सूचना का अधिकार अधिनियम देश में लागू किया गया. उस अधिनियम के बारे में, उसकी आवश्यकता के बारे में, जनसामान्य को उसका लाभ दिलाने के उद्देश्य से जब उस अधिनियम को समझा गया, जाना गया तो लगा कि सामाजिक सक्रियता के अपने स्वभाव के चलते इस अधिनियम का लाभ बहुतायत लोगों को दिलवाया जा सकता है. इस विचार के आते ही अपने कुछ मित्रों से राय-मशविरा करके सूचना अधिकार अधिनियम का लाभ जनसामान्य को दिलवाने के लिए, लोगों में इस अधिनियम के बारे में जागरूक करने के लिए आरटीआई फोरम का गठन करके उसका ढाँचा देशव्यापी स्तर पर बनाया गया. स्थानीय प्रशासन से एक महत्त्वपूर्ण सूचना माँगने के क्रम में आई मुश्किलों ने भी आरटीआई फोरम के गठन की तरफ दिमाग को दौड़ाया था.  


समय लगातार अपनी गति से आगे बढ़ता रहा. बिटोली और फोरम के कार्य अपने-अपने स्तर से सफलता की राह बढ़ते रहे. इस सफ़र में बहुत से साथी मिले, बहुत से दुश्मन भी मिले; साथ देने वाले भी आगे आये और गिराने वाले भी पीछे नहीं रहे. सामाजिक जीवन में मुश्किलों का सामना लगातार किया जाता रहा, इस दौरान भी करते रहे. सभी शुभेच्छुजनों के सहयोग, आशीर्वाद, मंगलकामना से सभी बाधाएँ दूर होती रहीं, सभी मुश्किलों का समाधान होता रहा, सामाजिक कार्य समाज के बीच अपना सकारात्मक सन्देश प्रसारित-प्रचारित करते रहे.


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ज़िन्दगी ज़िन्दाबाद @ कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र

48 - हवा में उड़ता जाए मेरा दीवाना दिल

स्कूटर के आने के बाद शुरू के कुछ दिन तो उसे चलाना सीखने में निकले. पहले दिन ही अपने घर से सड़क तक की गली को पार करने में ही लगभग पंद्रह मिनट ...