16 - जीते कभी समंदर से, कभी एक बूँद से हार गए

हॉस्पिटल में अंतिम रात ऑपरेशन थियेटर में जाना हुआ. गले के पास, शरीर की मेन लाइन में लगी नलियों को हटा दिया गया. ब्लड चढ़ने की प्रक्रिया बंद कर दी गई. अब बस वहाँ से निकल कर पनकी मामा के यहाँ शिफ्ट होने का इंतजार किया जा रहा था. शाम के लगभग चार-पाँच बजे करीब हमें डिस्चार्ज किया गया. खुला आसमान देखना, धूप देखना, हॉस्पिटल वाली सड़क पर लगे पेड़ों, दुकानों को देखना बहुत सुखद लग रहा था. उस शाम कानपुर का आसमान जितना चमकदार देखा, वैसा कभी नहीं देखा था. जितनी चमकती धूप उस दिन देखने को मिली थी वैसी तेज और चमकीली धूप फिर कभी देखने को नहीं मिली. पेड़ कुछ ज्यादा ही हरे समझ आ रहे थे. सड़क पर दौड़ते वाहन कुछ ज्यादा ही शोर करते लग रहे थे. एक महीने से अधिक हो गया था एक कमरे में बंद, सो अब खुला हुआ माहौल अच्छा सा मगर अचंभित करने जैसा लग रहा था.


मामा के घर पहुँचने के बाद सबसे बड़ी समस्या सामने आई हमारे खुद को उस वातावरण के साथ समन्वय बनाने की. हॉस्पिटल में अभी तक वातानुकूलित कमरे में रहना हो रहा था ऐसे में कुछ दिन परेशानी जैसा अनुभव होने के बारे में पहले से सचेत कर दिया गया था. शाम को नाना-नानी, मामा-मामी, सभी लोग बैठे रहे, हँसी-मजाक होता रहा तो इस तरफ ध्यान नहीं दिया मगर रात में दिक्कत महसूस हुई. उलझन सी समझ आने लगी. लगे जैसे साँस लेने में समस्या हो रही है. कभी घावों में जलन की अनुभूति हो, कभी दाहिने पंजे में खिंचाव जैसा हो. पसीना बहुत ज्यादा आने की समस्या बहुत पहले से बनी थी, ऐसे में इसकी उलझन भी सामने आ रही थी. मामा जी की तरफ से पंखे, कूलर की पर्याप्त व्यवस्था कर दी गई थी मगर यह नए वातावरण के साथ सामंजस्य बनाने का संक्रमण-काल समझकर जैसे-तैसे रात काटी.


दो-चार दिन की परेशानी के बाद उस माहौल में घावों ने, शरीर ने, हम सबने अपने आपको उसी अनुसार खपा लिया. यहाँ आने से दो-चार दिन पहले ही जानकारी हुई कि दाहिने पंजे को जाल के सहारे कसा गया है. पिछले एक महीने से होती आ रही ड्रेसिंग के बाद कुछ आराम सा रहा होगा जिस कारण पट्टी ज्यादा नहीं बाँधी जाती थी. दोनों तरफ की चोटों पर ड्रेसिंग के बाद की पट्टी बाँधने के बाद क्रैप बैंडेज बाँध दी जाती थी. उसी से उँगलियों को सहारा देने के लिए लगाये गए तार बाहर निकले दिखाई पड़ते थे. यहाँ आने के बाद पनकी में बने एक नर्सिंग होम में ड्रेसिंग के लिए हफ्ते में दो-तीन बार जाना होता था. इसी नर्सिंग होम में स्किन ग्राफ्टिंग की प्रक्रिया कई बार अपनाई गई. इसमें कभी आंशिक सफलता मिलती, कभी यह पूरी तरह से असफल हो जाती.

ऐसा शायद नियति ने पहले से निर्धारित कर रखा होगा क्योंकि दुर्घटना में बाँया पैर कटने, दाहिने पंजे के क्षतिग्रस्त होने के अलावा पूरे शरीर में कहीं भी गंभीर चोट नहीं थी. दाहिना पैर, पीठ, पैर में हलके-फुल्के खरोंच के निशान थे. इस कारण से स्किन ग्राफ्टिंग के लिए हमारी ही खाल निकालने में सहजता रही. इस प्रक्रिया के बाद इतनी मुश्किल और सहनी पड़ी कि दाहिना पैर से जहाँ-जहाँ से स्किन निकाली गई थी, वह हिस्सा भी पट्टियों से बाँध दिया गया. यहाँ मौसम के गर्म होने के कारण, पसीना आने के कारण बहुत बुरी तरह जलन होती. इसे सहन करने के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं था. ऐसा इसलिए क्योंकि उस पट्टी को किसी लोशन के द्वारा स्किन निकाली जगह पर चिपका दिया जाता था, जो एक निश्चित समय बाद निकलने लायक होती थी.

मामा के घर आने के बाद हॉस्पिटल की नर्सेज से, सहायकों से, रोज-रोज के ऑपरेशन थियेटर से, उसकी अजीब सी महक से, गले में लगी नलियों से, ब्लड चढ़ाती नली से, थोड़ी-थोड़ी देर में लगते इंजेक्शन से मुक्ति मिल गई थी. अम्मा, निशा, दोनों छोटे भाई, साला सुनील बराबर साथ रहते. घर में, घर जैसे माहौल में हँसी-मजाक करते, बातचीत करते, इधर-उधर की बातें करते समय बिताया जाता. यहीं आकर एक बार फिर पढ़ने, लिखने की इच्छा हुई. अपने साथ लेकर चले एक उपन्यास को पढ़ना शुरू किया गया. कुछ अंतरदेशीय पत्र मँगवाए गए और पत्र लिखने का काम किया गया.

दोनों हाथों की कलाई में भी धमक के कारण, झटका लगने के कारण मोच बनी रही थी बहुत दिन. इस कारण लिखना बहुत मुश्किल का काम होता था. एक लाइन लिखने में शुरू में पाँच-पाँच, दस-दस मिनट लग जाते. अक्षरों ने अपना रूप-स्वरूप बदल लिया. बनाना कुछ चाहते, बन कुछ और जाता. लाइन कहीं खींचते थे, खिंचती कहीं और थी. रोना आता अपनी इस हालत पर कि अब कभी लिख भी सकेंगे या नहीं? क्या राइटिंग पहले जैसी सुन्दर फिर आ सकेगी या नहीं?

समय के साथ बहुत कुछ सही हो गया. सही ढंग से लिखने भी लगे. राइटिंग भी पहले की तरह आने लगी. हाँ, कुछ अक्षरों ने अपना रूप जो बदला, सो वे अपने पुराने रंग में न आये.

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ज़िन्दगी ज़िन्दाबाद @ कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र 

4 comments:

  1. जानकर ख़ुशी हुई कि समय के साथ सब ठीक हो गया !

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  2. आपकी ये पोस्टें जितना अधिक रोमांचित करती हैं उतना ही प्रेरणा भी देती है। बहुत आभार सर , लिखते रहिए

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    1. आभार आपका. आप सभी का साथ रहना हमें हिम्मत देता है.

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