घर
आने के बाद समय का अकेलापन महसूस नहीं हो रहा था. अब समूचा परिदृश्य सामने दिख रहा
था. कानपुर रहने के दौरान सिर्फ स्वास्थ्य लाभ लिया जा रहा था. घर के किसी सदस्य के
उरई कई दिन रुकने की स्थिति भी नहीं बन सकती थी. इसके चलते गाँव के, खेती के, पिताजी के देहांत पश्चात् तमाम कानूनी कार्यों
में विलम्ब हो रहा था. उरई आने के बाद छोटे भाइयों की भागदौड़ बढ़ गई. अम्मा और पत्नी
की पारिवारिक कार्यों की व्यस्तता बढ़ गई. मिलने आने वालों की संख्या बढ़ गई. घावों के
अभी पूरी तरह भरे न हो पाने के कारण संक्रमण का खतरा बना हुआ था. जिसके चलते मिलना-जुलना
भी बहुत सीमित रूप में होता था.
कानपुर
से उरई आना सिर्फ उरई आना भर नहीं था. यहाँ आने का अर्थ बहुत सी जिम्मेवारियों का
निर्वहन था. उरई आना हुआ तो बहुत से अधूरे कामों को पूरा करने की तरफ ध्यान दिया गया.
सामाजिक जीवन के अधूरेपन की तरफ भी ध्यान दिया जाना था मगर उससे पहले पारिवारिक दायित्वों
की पूर्ति करनी थी. तमाम वे दायित्व निर्वहन करने थे जो पिताजी के असमय जाने पर स्वतः
ही हमारे कन्धों पर आ गए थे और हम उनके प्रति कुछ सोच भी पाते कि हम खुद पलंग पर आ
गए थे. उरई में होने का अर्थ उसी जगह पर फिर से खुद को खड़ा करना था जहाँ पर लगातार
सक्रियता रही थी. यहाँ होने का अर्थ अपने आपको साबित करना था.
खुद
को अपनी नज़रों में कभी कमजोर नहीं होने दिया था और यही हमारे लिए पर्याप्त था. उरई
आने के कुछ दिन बाद से ही सामाजिक सक्रियता को शुरू करने का मन होने लगा. इसके
पीछे एक कारण खुद को खुद की निगाह में यह साबित करना था कि ऐसी स्थिति में भी काम
करने का जज्बा शेष है या नहीं. इसके साथ-साथ उन तमाम लोगों की मानसिकता पर भी
प्रहार करना था जिनको लगता था कि हम अब ख़तम हो गए हैं. हमारा अस्तित्व अब शून्य
में विलीन हो गया है. उस समय कन्या भ्रूण हत्या निवारण से सम्बंधित हमारा एक प्रोजेक्ट
जनपद जालौन में संचालित था.
इस
विषय पर जनपद में सबसे पहले काम हमने उस समय आरम्भ किया था जबकि प्रशासनिक स्तर पर
भी इस दिशा में कोई काम नहीं हो रहा था. इसी प्रोजेक्ट के चलते हमें जनपद की
पीसीपीएनडीटी समिति का सदस्य भी बनाया गया था. इस समिति का कार्य जनपद में कन्या
भ्रूण हत्या सम्बन्धी मामलों को रोकना, अल्ट्रासाउंड सेंटर्स की कार्यविधि पर
निगाह रखना, नागरिकों के बीच इस विषय पर जागरूकता फैलाना आदि होता है. प्रति दो
माह में इस समिति के पदाधिकारियों की एक बैठक होती है, जिसमें कन्या भ्रूण हत्या
सम्बन्धी विषय पर तमाम बिन्दुओं पर विचार-विमर्श होता है. इस समिति का सदस्य होने
के कारण अगस्त में होने वाली बैठक की सूचना मिली. अप्रैल से लेकर अगस्त तक हमारा
आवागमन घर से हॉस्पिटल तक ही रहा था. ऐसे में बड़ी ऊहापोह बनी हुई थी कि बैठक में
शामिल हुआ जाये अथवा नहीं?
दो-तीन
दिन की ऊहापोह के बाद अंतिम रूप से हमारा उस बैठक में जाना तय हुआ. छोटे भाई का
मित्र अपनी कार के साथ निश्चित दिन पर उपस्थित हुआ. भाइयों के कन्धों का सहारा
लेकर हम सीएमओ ऑफिस पहुँचे. उन सभी के लिए हमारा उपस्थित होना आश्चर्य का विषय था.
हमारे खुद के लिए उरई के सामाजिक-साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सम्मिलित
होने के प्रति यह एक ठोस कदम था. दर्द, घाव, कष्ट आदि को दरकिनार कर एक बार बढ़े
कदम फिर थमे नहीं.
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ज़िन्दगी ज़िन्दाबाद @ कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र
तुम्हारे जैसे लोग एक मिसाल है । मेरी ढेर सी दुआएं। सदा आगे बढ़ते रहो।
ReplyDeleteबुआ जी, आपका आशीर्वाद है सब
Deleteरेखा दीदी ने आशीर्वाद दे दिया,अब मेरी तरफ से बधाई भी स्वीकारें ,बहुत बढ़िया
ReplyDeleteजी, सादर
Deleteइतनी कठिनाइयों के बावजूद सामजिक कार्यों में सक्रियता सराहनीय है.
ReplyDeleteबस, सक्रियता बनी रहे.... यही इच्छा है.
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