31 - फीलिंग्स ने परेशान ही किया, रियल हों या फाल्स

यह किसी भी व्यक्ति का सौभाग्य ही होता है कि वह जिस संस्था में अध्ययन करे उसी में उसको अध्यापन करने का अवसर मिले. यह उसके लिए आशीर्वाद ही होता है कि जिन गुरुजनों का आशीर्वाद उसे मिला, उन्हीं के साथ उसे अध्यापन करने का मौका मिले. हमें ये सौभाग्य अर्थशास्त्र और हिन्दी साहित्य, दोनों विषयों के साथ मिला. स्थानीय दयानंद वैदिक महाविद्यालय में अर्थशास्त्र से परास्नातक करने के साथ ही अध्यापन का अवसर मिला था. इसी तरह गाँधी महाविद्यालय में जब हम मानदेय प्रवक्ता के रूप में कार्यभार ग्रहण करने गए तो वहाँ हमें आशीर्वाद प्रदान करने के लिए हमारे गुरु जी डॉ० दिनेश चन्द्र द्विवेदी जी उपस्थित थे.


गाँधी महाविद्यालय से हिन्दी साहित्य परास्नातक करने के दौरान गुरु जी का आशीर्वाद लगातार मिलता रहा था. उस दिन हमारे लिए अधिक ख़ुशी देने वाला क्षण यह भी रहा कि उस दिन प्राचार्य पद का दायित्व गुरु जी के पास था. उनके आशीर्वाद के साथ हमने हिन्दी साहित्य विषय से मानदेय प्रवक्ता पद पर कार्य करना आरम्भ किया. पैर बनवाया नहीं था, इस कारण दो लोगों के कन्धों का उपयोग बैसाखी की तरह करते हुए कॉलेज जाना होता था. लगभग समूचा स्टाफ परिचित होने के कारण वहाँ समस्या आने वाली नहीं थी, ऐसा विश्वास था मगर ऐसा पूरी तरह न हो सका. कुछ समस्याएँ सामने आईं मगर जब बहुत बड़ी समस्या दूर हो चुकी थी तो इस समस्या का कोई अर्थ नहीं था.


उन दिनों तो समस्याएँ जैसे इंतजार करती थीं कि एक जाए और दूसरी आए. कभी एक समस्या से मिलने उसकी अनेक परिचित अपरिचित समस्याएँ चली आतीं. उन सभी से निपटते हुए दिमाग में बस पैर लगवाने का विचार चलता रहता. पैर के घाव की उसके ऊपर आने वाली त्वचा की स्थिति को देखते हुए लग रहा था कि फरवरी, मार्च तक पैर बनवाया जा सकता है. ऐसे में पूरा फोकस सिर्फ अपने आपको सशक्त करने पर था. दूसरे पैर पर जोर देकर खड़े होने का अभ्यास करना था. बुरी तरह से क्षतिग्रस्त दाहिने पंजे को मजबूती प्रदान करने पर था. ऐसे में किसी और तरफ ध्यान भी नहीं जाता था.

समस्यायों का निपटारा इसलिए भी सहजता से किया जाता ताकि आगे के लिए वे फिर न खड़ी हो सकें. ऐसे में बहुत सारी समस्याओं का समाधान होने के बीच में एक ऐसी उलझन पैदा होती जिसका निदान न तब हो सका था और न ही आ तक हो सका है. बाँए तरफ के कटे पैर में तब भी और अब भी ऐसा आभास होता जैसे पिंडली में खुजली मच रही है. कभी एहसास होता कि पंजे की उँगलियों में खुजली मच रही है; तलवे में कुछ झनझनाहट हो रही है; घुटने में किसी तरह की जकड़न महसूस होती.

समझ नहीं आता कि इन सबका इलाज कैसे किया जाये? दिमाग काम करना बंद कर देता कि जब जाँघ के नीचे पैर का हिस्सा है ही नहीं तो घुटने पर, पिंडली पर, पंजे पर कैसे खुजलाया जाये? उसकी जकड़न को कैसे दूर किया जाये? वहाँ कैसे हाथ फेर कर कुछ आराम महसूस किया जाये? ये समस्याएँ न दिन देखतीं न रात. उस समय सिवाय इधर उधर सिर, हाथ पटकने के अलावा कोई और काम नहीं रह जाता. बाँयी जाँघ पर घाव भरने की स्थिति में था, वहाँ भी हाथ फेरने अथवा किसी अन्य तरह से आराम नहीं दिलवाया जा सकता था.

मेडिकल भाषा में इसे फाल्स फीलिंग कहते हैं. इसके बारे में रवि ने बताया था मगर कानपुर में रहने के दौरान इसका अनुभव नहीं हो सका था. बाद में इस बारे में एलिम्को में कृत्रिम पैर लगवाने के दौरान कई लोगों ने भी बताया. यह फाल्स फीलिंग आज भी होती है. उन तमाम विधियों को भी आजमा लिया जिसमें कि मनुष्य की हथेली में सम्पूर्ण देह की संरचना छिपी दिखाई जाती है मगर किसी तरह का कोई आराम नहीं मिलता है. यह फाल्स फीलिंग तब भी होती थी, अब भी होती है. कब, कहाँ यह एहसास परेशान करने लगे कहा नहीं जा सकता.

घर में होने पर ऐसी स्थिति पर बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं होती क्योंकि उस समय हम किसी भी तरह से अपनी दैहिक भाव-भंगिमा बनाते हुए इस आभासी कष्ट से निकलने का प्रयास कर लेते हैं. इस तरह की फीलिंग से सामना करना उस समय बहुत मुश्किल होता है जबकि हम कहीं बाहर होते हैं. कभी स्कूटर चलाते समय, कभी सफ़र में, कभी क्लास में पढ़ाते समय, कभी किसी अन्य कार्यक्रम में होने पर इस एहसास से निपट पाना दुसाध्य होता है. उस समय बस भीतर ही भीतर इस एहसास से जूझते हुए आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं.


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ज़िन्दगी ज़िन्दाबाद @ कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र

4 comments:

  1. कितने तरह के दर्द और फ़ीलिंग्स जुड़ी हैं मानव मन के साथ ... कई दर्द झेलने वाल ही समझ सकता है ... कृत्रिम अंग और फाल्स फ़ीलिंग और जीवन की आशा बनाए रखना ... एक जीविट कार्य है ...

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  2. फ़ॉल्स फ़ीलिंग के बारे में पढ़कर ही छटपटाहट हो रही है। सच में यह सब ऐसी अनुभूति है जिससे गुज़रना ही होगा। जीवन कभी भी दुखों से मुक्त नहीं होता। यही जीवन का सच है।

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    1. आज भी ये परेशान कर जाती है। तमाम दुखों से मुक्ति के बाद भी लगता है कि ये न छूटेगा।

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