29 - प्रकाश पुंज के रहस्य में सकारात्मकता

सब दिन न होत एकसमान, यह बात जिसने भी कही है अपने अनुभव से ही कही होगी. वाकई ऐसा होता है कि सभी दिन एक जैसे नहीं रहते हैं. समय का चक्र तो अपनी गति से ही चलता है पर हम मनुष्यों को प्रयास करने चाहिए कि अपने कार्यों से, अपनी जिजीविषा से बुरे दिनों के प्रभाव को कम से कम कर सकें. उन दिनों में घर में सभी सदस्यों का प्रयास यही रहता कि बुरे समय को याद न किया जाये.


पिताजी की अनुपस्थिति स्पष्ट समझ आती थी, उसका एहसास किया जाता था मगर कोशिश यही की जाती कि उनके एहसास को ही उनकी उपस्थिति बना दिया जाये. हमारी ड्रेसिंग के दौरान, दैनिक क्रियाओं के दौरान अथवा अपने नियमित शारीरिक व्यायाम के दौरान हमारी स्थिति सबके सामने रहती. अनचाहे रूप में दुःख सब पर हावी होता मगर उसी के पीछे से खुशियों को सामने लाया जाता.

दुःख-सुख के मिले जुले अनुभव सामने आते. हँसने-रोने के कई-कई पल सामने आते. अपनों का मिलने आना भावनात्मक रूप से कमजोर भी करता और मजबूती भी देता. कुछ अपनों का परायों जैसा बर्ताव दुखी भी करता तो भविष्य के लिए एक सीख भी देता.


इधर एक अजीब सा अनुभव हमारे साथ हो रहा था. यह कानपुर में उसी समय से होता आ रहा था जबकि हम मामा जी के घर पर पनकी में थे. दिन का समय हो या रात का, हम अकेले हों या सबके साथ, सोए हुए हों या जागे, लेटे हों या बैठे ऐसा आभास होता जैसे कोई प्रकाश पुंज ऊपर से तैरता हुआ आकर हमारे बगल में रुक गया. बैठे होने की स्थिति में वह प्रकाश पुंज हमारी आँखों के सामने लगभग दो-तीन सेकेण्ड को रहता और फिर गायब हो जाता. लेटे होने की दशा में वह प्रकाश पुंज सिर के बगल में आकर गायब हो जाता.

ऐसा कृत्रिम पैर लगवाने के बाद भी कुछ महीनों तक हमारे साथ होता रहा. उसके बाद वह रौशनी जिस तरह से अचानक आना शुरू हुई थी, अचानक ही बंद भी हो गई. एक दो बार घरवालों से इस सम्बन्ध में उसी समय जानकारी ली कि क्या उनको भी ऐसा कुछ दिखाई दिया या आभास हुआ. घर में और किसी के साथ न तो ऐसा हो रहा था और न ही हमारे साथ होते समय किसी को वह रौशनी दिखाई देती.

आज इतने वर्षों के बाद भी अच्छे से याद है गोल आकार के उस पुंज के केन्द्र में पीला रंग हुआ करता था. उसके किनारे केसरिया, गुलाबी और हरे रंग का मिला-जुला रूप लिए होते थे. आज भी समझ नहीं आया कि किस तरह का सन्देश देने आती थी वह रौशनी? कौन सा विश्वास और मजबूत करने को आता था वह प्रकाश पुंज? उस रौशनी का आभास होने पर कभी डर का एहसास न हुआ, कभी घबराहट भी न हुई.

जैसी कि आदत में है कि जो विषय अपनी समझ से परे हो, जिस बिंदु पर स्वयं किसी तरह का निर्णय न ले पाने की स्थिति हो उसे आने वाले समय के ऊपर छोड़ देना चाहिए. इसी आदत के चलते हमेशा कोशिश यही रहती ऐसे किसी भी विषय पर सिर्फ सकारात्मकता रखनी चाहिए, अच्छा या बुरा जो भी हो उसके आने पर अगला कदम उठाया जाये. इस बिंदु पर भी सकारात्मकता बनाये रहे क्योंकि उस रौशनी का रहस्य समझ से बाहर था. चूँकि पिताजी का निधन हमारी दुर्घटना के ठीक एक महीने पहले हुआ था, इसलिए सकारात्मक विचार यही बनाये रखते कि किसी न किसी रूप में उनकी ऊर्जा, उनकी शक्ति हमें हौसला बँधाने आती है.  

ये प्रकृति ही जानती होगी, ईश्वरीय सत्ता ही जानती होगी कि वह रौशनी क्या थी, उस प्रकाश पुंज का क्या रहस्य था? हम तो आज भी बस इतना जानते हैं कि उस एहसास के कारण न तो कोई नुकसान हुआ, न कोई परेशानी हुई, न किसी तरह का डर लगा. जिस नुकसान, जिस परेशानी, जिस भय का एहसास होना था वह हम कर ही चुके थे.

.
ज़िन्दगी ज़िन्दाबाद @ कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र

1 comment:

  1. संसार में बहुत सारी ऐसी घटनाएँ या रहस्य है, जो हमारे समझ से परे है। बेहतर यही है कि इसे सकारात्मक रूप से स्वीकार किया जाए। शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete

48 - हवा में उड़ता जाए मेरा दीवाना दिल

स्कूटर के आने के बाद शुरू के कुछ दिन तो उसे चलाना सीखने में निकले. पहले दिन ही अपने घर से सड़क तक की गली को पार करने में ही लगभग पंद्रह मिनट ...