45 - ख़ामोशी से गुजर जाते हैं दर्द कितने

दाहिने पंजे के दर्द से कोई राहत नहीं मिल रही थी. उसकी स्थिति देखकर बहुत ज्यादा लाभ समझ भी नहीं आ रहा था. इस दर्द में उँगली भी अपने रंग-ढंग दिखाने में लगी थी. उसकी स्थिति ऐसी हो चुकी थी कि चलने में, खड़े रहने में बहुत ज्यादा दिक्कत आ रही थी. रवि की तरफ से जब यह निश्चित हो गया कि उँगली निकाल दिए जाने से कोई समस्या नहीं होनी है तो फिर उसी के अनुसार समय निश्चित किया गया. उन दिनों उसका दो दिनों शनिवार, रविवार उरई में बैठना होता था. बहुत बड़ा ऑपरेशन नहीं था, इसलिए उरई के उसी नर्सिंग होम में, जहाँ वह बैठता था, उँगली का निकाला जाना तय हुआ.


रविवार को दोपहर में ऑपरेशन थियेटर में एक बार फिर हम उपस्थित हुए. विगत कुछ वर्षों में ऑपरेशन थियेटर, हॉस्पिटल से गहरा रिश्ता बन गया था. ऑपरेशन थियेटर का माहौल जाना-पहचाना सा लगने लगा था. वहाँ फैली अजीब सी सुगंध, वहाँ रखे तमाम उपकरणों की आवाज़, उनकी महक को, उपस्थिति को अब बिना किसी परेशानी के महसूस किया जाता था.




फ़िलहाल, निश्चित समय पर उँगली को निकाले जाने की प्रक्रिया शुरू हुई. किसी सर्जन के हिसाब से यह बहुत छोटा सा ऑपरेशन था और हम जितने ऑपरेशन अपने साथ गुजरते देख चुके थे, उस हिसाब से हमें भी यह जरा सा ऑपरेशन मालूम हो रहा था. आराम से चलकर ऑपरेशन वाली टेबल पर लेट गए. रवि से उसी तरह अनौपचारिक बातें चलती रह रही थीं.


उँगली में ही लोकल एनेस्थेसिया देने के बाद उसका और उसके सहयोगियों का काम शुरू हो गया. पहले की तरह आँखों, चेहरे को किसी भी तरह की बंदिश से मुक्त रखा गया सो हम भी सहजता से वार्तालाप में शामिल हो रहे थे. ऑपरेशन के पहले रवि से कई बार इस बारे में चर्चा हुई थी कि उँगली का कितना हिस्सा निकाला जायेगा. ऑपरेशन थियेटर में भी उस दौरान हमने उससे पूछा कि कितनी उँगली काट दी?


बैठ कर देख लो, कितनी काटी है. रवि ने हँसते हुए कहा.

हमें लगा कि वह मजाक में ऐसा न कह रहा हो तो हमने पूछा बैठ जाएँ?

हाँ, बैठ जाओ और देखकर बताओ और काटें या इतनी ही? उसके ऐसा कहते ही हम बैठ गए.


पहली नजर में न उँगली समझ आई और न ही पंजा समझ आया. पूरे पंजे को कपड़े से ढांक रखा था. उँगली खून से सनी लाल दिखाई दे रही थी और चारों तरफ रुई के फाहों की जकड़ में थी.

अबे जरा साफ़ करके तो दिखाओ, तब तो समझ आए कि तुमने कितनी काट डाली. हमारे ऐसा कहते ही रवि के एक सहायक ने ऊँगली साफ़ की तो साफ़-साफ़ दिखाई देने लगा कि कितना हिस्सा काटा गया है.


हाँ, ठीक है. बाकी तुम भी देख-समझ लो. हमें चलने में, खड़े होने में समस्या न हो, बस.

हमने तो अपने हिसाब से काट ही दी है. तुम भी समझ लो. कहो तो और काट दें? हँसी के साथ रवि की इस बात पर हम सभी हँस पड़े.


वे सब फिर अपने काम में लग गए और हम बैठे-बैठे उनको उँगली के साथ खेलते देखने लगे. लोकल एनेस्थेसिया के कारण उँगली में कोई एहसास भी नहीं था सो न कोई दर्द मालूम हो रहा था, न ही कुछ महसूस हो रहा था. हमें बैठे देख रवि ने लेटने को कहा तो हमने कहा कि टाँके लगते भी देख लें. जरा सुन्दरता से लगाना, कहीं उँगली की खूबसूरती न बिगाड़ दो.


बिना कुछ कहे वे लोग अपने काम में फिर जुट गए. उस दिन पहली बार टाँके लगते देखे. जीवन में बहुत बार चोट से, मरहम-पट्टी करवाने से, लोगों की घायल हो जाने पर मदद करने का मौका मिला था मगर कभी ऐसा अवसर नहीं आया था कि किसी को टाँके लगवाने पड़े हों. टाँके लग जाने के बाद हम और रवि आपस में बातें करने लगे, उसके सहायक पैर में पट्टी बाँधने में जुट गए. सारा काम हो जाने के बाद एक आशा थी कि शायद अब दाहिने पंजे को कुछ राहत मिल सके. ऑपरेशन थियेटर से बाहर आकर आगे के कुछ दिनों की दवाई, मरहम-पट्टी के बारे में सलाह लेकर घर आ गए.


निश्चित समय के बाद टाँके खोले गए. उँगली जैसी सोची थी, उसी स्थिति में आ गई मगर दर्द न गया. उँगली के काट दिए जाने के बाद से उसकी तरफ से कोई समस्या नहीं हो रही थी मगर शेष तीन उँगलियों और पंजे की अपनी समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई थी. बची हुई तीन उँगलियाँ रक्त-प्रवाह सिर्फ नीचे की तरफ से था, ऊपर की तरफ से वे सभी अनुभूति-शून्य थीं. इसके अलावा उनमें किसी तरह की गतिविधि स्वयं नहीं होती थी, इस कारण वे तीनों भी धीरे-धीरे नीचे की तरफ मुड़ने लगीं. उनका भी एकमात्र निदान कटवाना समझ आ रहा है. हाल-फ़िलहाल तो इस पर भी कई बार रवि से चर्चा हुई है मगर अभी अंतिम निष्कर्ष नहीं निकला है. देखिये, क्या होता है.

  

.
ज़िन्दगी ज़िन्दाबाद @ कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र

2 comments:

  1. उंगलियों का निदान भले न निकलता समझ आ रहा हो मगर इस बेपनाह बेइंतिहा दर्द से आपने जिंदगी को ज़िन्दाबाई बनाने की जो राह निकाली है
    वो बेमिसाल है और सभी युवाओं के लिए एक मिसाल भी है

    ReplyDelete
  2. ओह! अपने शरीर के हिस्से को देखते हुए कटवाना बहुत साहस का कार्य है। मैं एक सूई लेने से डरती थी कभी पर समय के साथ 6 ऑपरेशन करवाए। सचमुच समय हिम्मत भी देता है और सहारा भी। आपके साहस को नमन।

    ReplyDelete

48 - हवा में उड़ता जाए मेरा दीवाना दिल

स्कूटर के आने के बाद शुरू के कुछ दिन तो उसे चलाना सीखने में निकले. पहले दिन ही अपने घर से सड़क तक की गली को पार करने में ही लगभग पंद्रह मिनट ...